अजयगढ़ का किला मध्य प्रदेश के पन्ना पन्ना जिला मुख्यालय से 35 KM की दूरी पर है, अजयगढ़ का किला चंदेल राजवंश बहुत ही प्रसिद्ध किला है। यह किला बुंदेलखण्ड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। अजयगढ़ का किला भी कालिंजर के किले समान ही बहुत प्राचीन है। इस किले का निर्माण कनिथम के अनुसार ईसा की प्रथम शताब्दी मे हुआ है। ।
प्रचीन समय में यह क्षेत्र चंदि जनपद, मे आता था । यह किला गिरि दुर्ग श्रेणी मे आता है। जिसका निर्माण विंध्याचल पर्वत मे श्रृंखला मे हुआ है। लेकिन कुछ लोग इसे इस किले का निर्माण 8वी 9 वी सदी का बताते है, यहां पर जो भी अभिलेख स अभीतक मिले हैं सभी चंदल कालीन है।
इस किले का प्राचीन नाम जयपुर दुर्ग या जयपुर किला था, बाद मे इसका नाम अजयगढ़ किला रखा गया। मध्य प्रदेश के अजय किला को “अजेय किले” के नाम से भी जानते है। क्योंकि इस किले को किसी शत्रु सेना ने कभी नहीं जीता था ।कहा जाता है कि अजयगढ़ के रक्षक देवता जयपाल थे, जो बाद में जयपाल से ही अजयपाल बने, भगवन विष्णु ही अजयपाल देवता है, जो अजयगढ़ किले की रक्षक देवता मने जाते है। प्रभु अजयपाल की प्रतिमा किले के मध्य में स्थित तालाब किनारे स्थित है जो “चंदेल शासन काल मे स्थिति स्थापित किया गया था
यह क्षेत्र शेव – वासना का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था।
प्रचीन काल से ही अजयगढ़ के क्षेत्र का विस्तार पश्चिम मे बेतवा नदी तथा पूर्व मे विंदयाचल पर्वत व उत्तर दिशा मे यमुना नदी वही दक्षिणी क्षेत्र नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। कहा जाता है कि इस किले का निर्माण चंदेल वंश के राजा “गुमान सिंह” ने करवाया था। इस किले के ऊपर जाने के दो मार्ग है। पहला रास्ता पूर्व दिशा मे है, इस मार्ग से पैदल ही जाया जा सकता हैऔर दूसरा रास्ता उत्तर दिशा से चढ़ा जा सकता है। जो कि कठीन है। विध्युपर्वत माला के उपरी चोटी धरातल से लगभग (688m)पर अभेद किला का निर्माण कराया गया है। यह किला सुन्दर पर्वतमाला तथा केन नदी के अद्भुत दृश्य को दर्शाता है।
अजयगढ़ किले को चंदेल शासको के द्वारा युद्ध पद्धति के अनुसार इसे दुर्ग के रूप मे निर्मीत कराया था। इस किले को कालिंजर किले के समान प्राचीन मानते है। अजयगढ़ के किले मे मदन वर्मन, भोज वर्मन और हम्मीर वर्मन तथा त्रैलोक्य वर्मन के अभी तक अभिलेख पाये जाते है। इससे चंदेल युग का इतिहास का पता लगता है। इस वश के शासको ने अपने यहां कायस्थो को उच्च पदो पर नियुक्त किया था।
कहा जाता है कि जब कलिंजर के महल पर तुर्क व मुगलो का आक्रमण होता था उसे समय चंदेल अपनी सुरक्षा के लिए अजय-गढ किले मे अपनी शरण लेते थे। यह एक अभेद किला है। इस किले पर चढना किसी चुनौती से कम नही है। अबुलू फजल (आइने अकबरी के लेखक) ने इस किले को महल का दर्जा दिलाया था।
अजयगढ़ किले मे लगभग 5 मुख्य द्वार हुआ करते थे। लेकिन अब सिर्फ 2 द्वार ही बचे है, उत्तरी दिशा के द्वार का कोई नाम नही है , जबकि दक्षिण पूर्व के द्वार का नाम, तरौनी दरवाजा है। यह दरवाजा तरौनी गांव मे खुलता है। उत्तरी द्वार के निकट दो कुंड है जिनका नाम गंगा व यमुना कुंड है।
इस कुंड का निर्माण वीरवर्मन देव की राजमहशी कल्याणी ने बनवाये थे। इस अभिलेख मे इस स्थान का नाम नन्दीपुर है। अंजयगढ़ के दक्षिणी छोर पर चार आकर्षक मंदिर है, किले के इन मंदिरो को लोग रंगमहल व चंदेली महल के नाम से जानते है। इन मंदिरो मे 2 बिष्णु मंदिर, 1 शिव मंदिर व एक राजा परिमल की बैठक है। इनमें से एक मंदिर 60 foot लम्बा व 40 foot चौड़ा है। इस मंदिर मे न जाने असंख्य अभिलेख मौजूद है। तथा विभिन्न देवी देवताओ की प्रतिमा भी मौजूद है।
अजयगढ़ दुर्ग के उत्तरी पश्चिमी कोने पर भूतेश्वर नाम का एक स्थान है, जहां से अजयपाल मंदिर का रास्ता जाता है गुफा के अन्दर शिवलिंग व अनन्त शेष धारी विष्णु की भी मूर्ति मैौजूद है।
इस किले के अन्दर अनसुलझी पहेलीयां है, जिसे कोई अभी तक नही सुलझा पाया। किले के अन्दर पथर पर ताले चाबी की आकृति तराशी गई है तो अन्य पत्थर पर प्राचीन लिपि में कुछ अंकित किया गया है इस किले में खजाने के दबे होने की जानकारी मिलती है दूर्ग के मुख्यद्वार पर चौखट पर कुडलीनुमा अकृति बनी है।
Note: अजयगढ़ के किले के प्रवेश द्वार तक पहुंचने के लिए 500 खड़ी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। उपर जाने पर किसी तरह की कोई व्यवस्था नही है जैसे – (मानव आवास, सूचना स्रोत या फिर कोई साइन बोर्ड) यहाँ घूमने जाने का सही समय सुबह 6 बजे से शाम के 6 बजे तक ही है। यहा जाने के लिए पूरी व्यवस्था के साथ जाना पड़ता है, जैसे की भोजन व पानी बहुत ही जरूरी है। अजयगढ़ किला जाने के लिए आपको पन्ना जिला व खजुराहो (छतरपुर) से हर समय बस से उपलब्ध है।
अजयगढ़ का किला मध्य प्रदेश के पन्ना पन्ना जिला मुख्यालय से 35 KM की दूरी पर है, अजयगढ़ का किला चंदेल राजवंश बहुत ही प्रसिद्ध किला है। यह किला बुंदेलखण्ड क्षेत्र के अन्तर्गत आता है। अजयगढ़ का किला भी कालिंजर के किले समान ही बहुत प्राचीन है। इस किले का निर्माण कनिथम के अनुसार ईसा की प्रथम शताब्दी मे हुआ है। ।
प्रचीन समय में यह क्षेत्र चंदि जनपद, मे आता था । यह किला गिरि दुर्ग श्रेणी मे आता है। जिसका निर्माण विंध्याचल पर्वत मे श्रृंखला मे हुआ है। लेकिन कुछ लोग इसे इस किले का निर्माण 8वी 9 वी सदी का बताते है, यहां पर जो भी अभिलेख स अभीतक मिले हैं सभी चंदल कालीन है।
इस किले का प्राचीन नाम जयपुर दुर्ग या जयपुर किला था, बाद मे इसका नाम अजयगढ़ किला रखा गया। मध्य प्रदेश के अजय किला को “अजेय किले” के नाम से भी जानते है। क्योंकि इस किले को किसी शत्रु सेना ने कभी नहीं जीता था ।कहा जाता है कि अजयगढ़ के रक्षक देवता जयपाल थे, जो बाद में जयपाल से ही अजयपाल बने, भगवन विष्णु ही अजयपाल देवता है, जो अजयगढ़ किले की रक्षक देवता मने जाते है। प्रभु अजयपाल की प्रतिमा किले के मध्य में स्थित तालाब किनारे स्थित है जो “चंदेल शासन काल मे स्थिति स्थापित किया गया था
यह क्षेत्र शेव – वासना का एक महत्वपूर्ण केन्द्र था।
प्रचीन काल से ही अजयगढ़ के क्षेत्र का विस्तार पश्चिम मे बेतवा नदी तथा पूर्व मे विंदयाचल पर्वत व उत्तर दिशा मे यमुना नदी वही दक्षिणी क्षेत्र नर्मदा नदी तक फैला हुआ था। कहा जाता है कि इस किले का निर्माण चंदेल वंश के राजा “गुमान सिंह” ने करवाया था। इस किले के ऊपर जाने के दो मार्ग है। पहला रास्ता पूर्व दिशा मे है, इस मार्ग से पैदल ही जाया जा सकता हैऔर दूसरा रास्ता उत्तर दिशा से चढ़ा जा सकता है। जो कि कठीन है। विध्युपर्वत माला के उपरी चोटी धरातल से लगभग (688m)पर अभेद किला का निर्माण कराया गया है। यह किला सुन्दर पर्वतमाला तथा केन नदी के अद्भुत दृश्य को दर्शाता है।
अजयगढ़ किले को चंदेल शासको के द्वारा युद्ध पद्धति के अनुसार इसे दुर्ग के रूप मे निर्मीत कराया था। इस किले को कालिंजर किले के समान प्राचीन मानते है। अजयगढ़ के किले मे मदन वर्मन, भोज वर्मन और हम्मीर वर्मन तथा त्रैलोक्य वर्मन के अभी तक अभिलेख पाये जाते है। इससे चंदेल युग का इतिहास का पता लगता है। इस वश के शासको ने अपने यहां कायस्थो को उच्च पदो पर नियुक्त किया था।
कहा जाता है कि जब कलिंजर के महल पर तुर्क व मुगलो का आक्रमण होता था उसे समय चंदेल अपनी सुरक्षा के लिए अजय-गढ किले मे अपनी शरण लेते थे। यह एक अभेद किला है। इस किले पर चढना किसी चुनौती से कम नही है। अबुलू फजल (आइने अकबरी के लेखक) ने इस किले को महल का दर्जा दिलाया था।
अजयगढ़ किले मे लगभग 5 मुख्य द्वार हुआ करते थे। लेकिन अब सिर्फ 2 द्वार ही बचे है, उत्तरी दिशा के द्वार का कोई नाम नही है , जबकि दक्षिण पूर्व के द्वार का नाम, तरौनी दरवाजा है। यह दरवाजा तरौनी गांव मे खुलता है। उत्तरी द्वार के निकट दो कुंड है जिनका नाम गंगा व यमुना कुंड है।
इस कुंड का निर्माण वीरवर्मन देव की राजमहशी कल्याणी ने बनवाये थे। इस अभिलेख मे इस स्थान का नाम नन्दीपुर है। अंजयगढ़ के दक्षिणी छोर पर चार आकर्षक मंदिर है, किले के इन मंदिरो को लोग रंगमहल व चंदेली महल के नाम से जानते है। इन मंदिरो मे 2 बिष्णु मंदिर, 1 शिव मंदिर व एक राजा परिमल की बैठक है। इनमें से एक मंदिर 60 foot लम्बा व 40 foot चौड़ा है। इस मंदिर मे न जाने असंख्य अभिलेख मौजूद है। तथा विभिन्न देवी देवताओ की प्रतिमा भी मौजूद है।
अजयगढ़ दुर्ग के उत्तरी पश्चिमी कोने पर भूतेश्वर नाम का एक स्थान है, जहां से अजयपाल मंदिर का रास्ता जाता है गुफा के अन्दर शिवलिंग व अनन्त शेष धारी विष्णु की भी मूर्ति मैौजूद है।
इस किले के अन्दर अनसुलझी पहेलीयां है, जिसे कोई अभी तक नही सुलझा पाया। किले के अन्दर पथर पर ताले चाबी की आकृति तराशी गई है तो अन्य पत्थर पर प्राचीन लिपि में कुछ अंकित किया गया है इस किले में खजाने के दबे होने की जानकारी मिलती है दूर्ग के मुख्यद्वार पर चौखट पर कुडलीनुमा अकृति बनी है।
Note: अजयगढ़ के किले के प्रवेश द्वार तक पहुंचने के लिए 500 खड़ी सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। उपर जाने पर किसी तरह की कोई व्यवस्था नही है जैसे – (मानव आवास, सूचना स्रोत या फिर कोई साइन बोर्ड) यहाँ घूमने जाने का सही समय सुबह 6 बजे से शाम के 6 बजे तक ही है। यहा जाने के लिए पूरी व्यवस्था के साथ जाना पड़ता है, जैसे की भोजन व पानी बहुत ही जरूरी है। अजयगढ़ किला जाने के लिए आपको पन्ना जिला व खजुराहो (छतरपुर) से हर समय बस से उपलब्ध है।
Shaded in the Panna district of Madhya Pradesh, the Pandav Falls grace the banks of Ken River and reign at a height of around 30 meters. Named after the Pandava brothers from the Indian Epic Mahabharata who are believed to have been there, the area is loaded with natural gems.